Friday, May 22, 2020

मङ्गल - माहेश्वरसूत्राणि


मङ्गलाचरणम्

नत्वा सरस्वतीं देवीं शुद्धां गुण्यां करोम्यहम्।
पाणिनीयप्रवेशाय लघुसिद्धान्तकौमुदीम्।।

माहेश्वरसूत्राणि

इनकी संख्या  14  है :-
  1. अइउण्
  2.  ऋलृक्
  3. एओङ्
  4. ऐऔच्
  5. हयवरट्  
  6. लण् 
  7. ञमङणनम्
  8. झभञ्
  9. घढधष्
  10. जबगडदश्
  11. खफछठथचटतव्
  12. कपय्
  13. शषसर् 
  14.  हल्

माहेश्वरसूत्रों के आधार पर वर्णों का विभाजन

स्वर 
  1. अइउण् - अ इ उ ।।
  2.  ऋलृक् - ऋ ऌ ।। 
  3. एओङ् - ए ओ ।।
  4. ऐऔच् - ऐ औ ।।
अन्त:स्थ वर्ण
  1. हयवरट् - ह य व र ।। 
  2. लण् - ल ।।
वर्ग का पाँचवां अक्षर
  1. ञमङणनम् - ञ म ङ ण न ।।
वर्ग का चौथा अक्षर
  1. झभञ् -  झ भ ।। 
  2. घढधष् - घ ढ ध ।।
वर्ग का तीसरा अक्षर
  1. जबगडदश् - ज ब ग ड द ।।
वर्ग का दूसरा और पहला अक्षर
  1. खफछठथचटतव् - ख फ छ ठ थ च ट त ।।
  2. कपय् - क प ।।
ऊष्म वर्ण
  1. शषसर् - श ष स ।।
  2.  हल् - ह ।।

प्रत्याहार-निर्माण

इनकी संख्या  44  है :-
  1. अण् - अ इ उ
  2. अक् - अ इ उ ऋ ऌ
  3. अच् - सभी स्वर
  4. अट् - सभी स्वर और ह य व र 
  5. अण् - सभी स्वर, ह और अन्त:स्थ
  6. अम् - सभी स्वर, ह अन्त:स्थ और वर्ग का पांचवा अक्षर
  7. अश् - सभी स्वर, ह अन्त:स्थ और वर्ग का तीसरा चौथा पांचवा अक्षर
  8. अल् -  सभी स्वर व व्यंजन वर्ण 
  9. इक् - इ उ ऋ ऌ 
  10. इच् - इ उ ऋ ऌ ए ओ ऐ औ
  11. इण् - इ उ ऋ ऌ ए ओ ऐ औ ह और अन्त:स्थ
  12. उक् - उ ऋ ऌ
  13. एङ् - ए ओ
  14. एच् - ए ओ ऐ औ
  15. ऐच् - ऐ औ
  16. हश् - ह अन्त:स्थ और वर्ग का तीसरा चौथा पांचवा अक्षर
  17. हल् - सभी व्यंजन वर्ण
  18. यण् - अन्त:स्थ वर्ण
  19. यम् - अन्त:स्थ और वर्ग का पांचवा अक्षर
  20. यञ् - अन्त:स्थ, वर्ग का पांचवा अक्षर‌ और झ भ
  21. यय् - अन्त:स्थ और वर्ग का पहला दूसरा तीसरा चौथा पांचवा अक्षर
  22. यर् - अन्त:स्थ, सभी वर्ग और श ष स
  23. वश् - व र ल और वर्ग का तीसरा चौथा पांचवा अक्षर
  24. वल् - शेष सभी व्यंजन वर्ण य को छोड़कर
  25. र / रँ - र ल
  26. रल् - शेष सभी व्यंजन वर्ण य व को छोड़कर
  27. ञम् - वर्ग का पांचवा अक्षर
  28. मय् - म ङ ण न और वर्ग का पहला दूसरा तीसरा चौथा अक्षर
  29. ङम् - ङ ण न 
  30. झष् - वर्ग का चौथा अक्षर
  31. झश् - वर्ग का तीसरा चौथा अक्षर
  32. झय् - वर्ग का पहला दूसरा तीसरा चौथा अक्षर
  33. झर् - वर्ग का पहला दूसरा तीसरा चौथा अक्षर और श ष स
  34. झल् - वर्ग का पहला दूसरा तीसरा चौथा अक्षर और ऊष्म वर्ण
  35. भष् - भ घ ढ ध
  36. जश् - वर्ग का तीसरा अक्षर
  37. बश् - ब ग ड द
  38. खय् - वर्ग का पहला दूसरा अक्षर
  39. खर् - वर्ग का पहला दूसरा अक्षर और श ष स
  40. छव् - छ ठ थ च ट त
  41. चय् - वर्ग का पहला अक्षर
  42. चर् - वर्ग का पहला अक्षर और श ष स
  43. शर् - श ष स
  44. शल् - उष्म वर्ण


Monday, May 18, 2020

स्वर सन्धि ~ 2

स्वर सन्धि ~ 2


यण् स्वर सन्धि (इकोयणचि) = इ उ ऋ ऌ के बाद यदि इनसे भिन्न‌ कोई स्वर आए तो क्रमश:को य् को व् ऋ को र् और को ल् हो जाता है।
इ/ई + कोई इ/ई से भिन्न स्वर = (इ/ई ~ य्)
उ/ऊ + कोई उ/ऊ से भिन्न स्वर = (उ/ऊ ~ व्)
ऋ + कोई ऋ से भिन्न स्वर = (ऋ ~ र्)
ऌ + कोई ऌ से भिन्न स्वर = (ऌ ~ ल्)


उदाहरण
इ/ई + कोई इ/ई से भिन्न स्वर = (इ/ई ~ य्)
सुधी + उपास्य: - सुध्युपास्य:
अति + उत्तम: - अत्युत्तम:
इति + अत्र - इत्यत्र
इति + आदि - इत्यादि
यदि + अपि - यद्यपि
प्रति + एकम् - प्रत्येकम्
दधि + आनय - दध्यानय
नदी + उद्कम् - नद्युद्कम्
स्त्री + उत्सव: - स्त्र्युत्सव:
नारी + अत्र - नार्यत्र
स्मृति + आदेश: - स्मृत्यादेश:
वारि + अस्ति - वार्यस्ति
शशी + उदियाय - शश्युदियाय
अभि + उदय: - अभ्युदय:


उ/ऊ + कोई उ/ऊ से भिन्न स्वर = (उ/ऊ ~ व्)
मधु + अरि: - मध्वरि:
अनु + अय: - अन्वय:
सु + आगतम् - स्वागतम्
गुरु + आदेश: - गुर्वादेश:
साधु + इति - साध्विति
मनु + आदि: - मन्वादि:
वधू + आगम: - वध्वागम:
वस्तु + अस्ति - वस्त्वस्ति


ऋ + कोई ऋ से भिन्न स्वर = (ऋ ~ र्)
धातृ + अंश: - धात्रंश:
पितृ + अनुमति: - पित्रनुमति:
मातृ + आज्ञा - मात्राज्ञा
भ्रातृ + उक्तम् - भ्रात्रुक्तम् 
सवितृ + उदय: - सवित्रुदय:


ऌ + कोई ऌ से भिन्न स्वर = (ऌ ~ ल्)
ऌ + आकृतिः - लाकृतिः
ऌ + अनुबन्ध: - लनुबन्ध:
ऌ + आकार: - लाकार:


अयादि स्वर सन्धि (एचोऽयवायाव:) = ए ओ ऐ औ के बाद यदि कोई भी स्वर आए तो क्रमश: को अय् ओ को अव् ऐ को आय् और को आव् हो जाता है।
ए + कोई स्वर = (ए ~ अय्)
ओ + कोई स्वर = (ओ ~ अव्)
ऐ + कोई स्वर = (ऐ ~ आय्)
औ + कोई स्वर = (औ ~ आव्)


उदाहरण
ए + कोई स्वर = (ए ~ अय्)
हरे + ए - हरये
शे + अनम् - शयनम्
ने + अनम् - नयनम्
चे + अनम् - चयनम्
शे + आन: - शयान:


ओ + कोई स्वर = (ओ ~ अव्)
विष्णो + ए - विष्णवे
विष्णो + इति - विष्णविति
विष्णो + इह - विष्णविह
पो + अन: - पवन:
पो + इत्रम् - पवित्रम्
भो + अति - भवति
भो + अनम् - भवनम्


ऐ + कोई स्वर = (ऐ ~ आय्)
नै + अक: - नायक:
गै + अक: - गायक:
गै + अनम् - गायनम्


औ + कोई स्वर = (औ ~ आव्)
पौ + अक: - पावक:
भौ + उक: - भावुक:
नौ + इक: - नाविक:
धौ + अक: - धावक:
असौ + अयम् - असावयम्
भौ + अयति - भावयति
इन्दौ + उदिते - इन्दावुदिते


विशेष नियम -
ओ + यकारादि प्रत्यय = (ओ ~ अव्)
गो + यम् - गव्यम्
गो + यूति: - गव्यूति:
औ + यकारादि प्रत्यय = (औ ~ आव्)
नौ + यम् - नाव्यम्



पूर्वरूप स्वर सन्धि (एङः पदान्तादति) = पदान्त ए ओ के बाद यदि आए तो दोनो वर्णों के स्थान पर पूर्वरूप एकादेश ए ओ ही हो जाता है। साथ ही को अवग्रह (ऽ) हो जाता है।
ए + अ = एऽ
ओ +अ = ओ


उदाहरण
ए + अ = एऽ
अन्ते + अपि - अन्तेऽपि
हरे + अव - हरेऽव
मे + अन्तिके - मेऽन्तिके
गुरवे + अदात् - गुरवेऽदात्


ओ +अ = ओऽ
विष्णो + अव - विष्णोऽव
को + अपि - कोऽपि
सो + अवदत् - सोऽवदत्
नमो + अस्तु - नमोऽस्तु
गो + अग्रम् - गोऽग्रम् 


पररूप स्वर सन्धि (एङि पररूपम्) = वर्णान्त उपसर्ग के बाद यदि ए ओ आए तो दोनो वर्णों के स्थान पर पररूप एकादेश ए ओ ही हो जाता है।
अ + ए = ए
अ + ओ = ओ


उदाहरण
अ + ए = ए
प्र + एजते - प्रेजते
उप + एजते - उपेजते
अव + एजते - अवेजते
प्र + एषयति - प्रेषयति


अ + ओ = ओ
उप + ओषति - उपोषति
प्र + ओषति - प्रोषति
अव + ओषति - अवोषति


विशेष नियम -
टि भाग को पररूप एकादेश
शक + अन्धु: - शकन्धु: (शक - अ)
कर्क + अन्धु: - कर्कन्धु: (कर्क - अ)
कुल + अटा - कुलटा (कुल - अ)
सीम + अन्त: - सीमन्त: (सीम - अ)
सार + अङ्ग: - सारङ्गः (सार - अ)
मनस् + ईषा - मनीषा (मनस् - अस्)
पतत् + अञ्जलिः - पतञ्जलिः (पतत् - अत्)


Note ~ यहाँ शक, कर्क, कुल, सीम और सार मेंतथा मनस् मे अस् पतत् मे अत्  टि भाग है। 

स्वर सन्धि ~ 1

स्वर सन्धि ~ 1


दीर्घ स्वर सन्धि (अकः सवर्णे दीर्घः) = अ आ इ ई उ ऊ ऋ ॠ के बाद यदि कोई सवर्ण (समान अक्षर) अर्थात् अ आ इ ई उ ऊ ऋ ॠ आए तो उन दोनो वर्णों के स्थान पर उन्ही वर्णों का दीर्घ-एकादेश आ ई ऊ ॠ हो जाता है।
अ/आ + अ/आ = आ 
इ/ई + इ/ई = ई
उ/ऊ + उ/ऊ = ऊ
ऋ/ॠ + ऋ/ॠ = ॠ
अभिप्राय -
अ + अ = आ         इ + इ = ई
अ + आ = आ        इ + ई = ई
आ + अ = आ        ई + इ = ई
आ + आ = आ       ई + ई = ई


उ + उ = ऊ          ऋ + ऋ = ॠ
उ + ऊ = ऊ         ऋ + ॠ = ॠ
ऊ + उ = ऊ         ॠ + ऋ = ॠ
ऊ + ऊ = ऊ        ॠ + ॠ = ॠ


उदाहरण -
अ/आ + अ/आ = आ 
दैत्य + अरिः - दैत्यारि:
शश + अंक: - शशांक:
गौर + अङ्ग: - गौराङ्ग:
मम + अपि - ममापि
मुर + अरि: - मुरारि:
तुल्य + अस्य - तुल्यास्य
हिम + आलय: - हिमालय:
रत्न + आकर: - रत्नाकर:
पद्म + आकर: - पद्माकर:
यथा + अर्थ: - यथार्थ:
विद्या + अर्थी - विद्यार्थी
तथा + अपि - तथापि
दु:ख + अन्त: - दु:खान्त:
विद्या + आलय: - विद्यालय:


इ/ई + इ/ई = ई
रवि + इन्द्र: - रवीन्द्र:
हरि + ईश: - हरीश:
लक्ष्मी + इन्दु: - लक्ष्मीन्दु:
देवी + इयम् - देवीयम्
अति + इव - अतीव
महती + इच्छा - महतीच्छा
गौरी + ईश: - गौरीश:
श्री + ईश: - श्रीश:


उ/ऊ + उ/ऊ = ऊ
विष्णु + उदय: - विष्णूदय:
मधु + उत्तमम् - मधूत्तमम्
भानु + ऊष्मा - भानूष्मा
सिन्धु + ऊर्मि: - सिन्धूर्मि:
वधू +:उत्सव: - वधूत्सव:
वधू + उवाच: - वधूवाच:
भू + ऊर्ध्वम् - भूर्ध्वम्


ऋ/ॠ + ऋ/ॠ = ॠ
होतृ + ऋकारः - होतॄकार:
पितृ + ऋणम् - पितॄणम्
मातृ + ऋणम् - मातॄणम्
कर्तृ + ऋद्धि: - कर्तॄद्धि:


गुण स्वर सन्धि (आद्गुणः) = अ/आ के बाद यदि इ/ई उ/ऊ ऋ/ऋ ऌ आए तो दोनो वर्णौं के स्थान पर गुण-एकादेश ए ओ अर् अल्  हो जाता है।
अदेङ्गुण: - ए ‌ ओ  (गुण वर्ण)


अ/आ + इ/ई = ए
अ/आ + उ/ऊ = ओ
अ/आ + ऋ/ॠ = अर्
अ/आ + ऌ = अल्
अभिप्राय -
अ + इ = ए       अ + उ = ओ 
अ + ई = ए       अ + ऊ = ओ
आ + इ = ए      आ + उ = ओ
आ + ई = ए      आ + ऊ = ओ


अ + ऋ = अर्      अ + ऌ = अल्
आ + ऋ = अर्


उदाहरण
अ/आ + इ/ई = ए
उप + इन्द्र: - उपेन्द्र:
महा + इन्द्र: - महेन्द्र:
न + इति - नेति
न + इदम् - नेदम्
विकल + इन्द्रिय: - विकलेन्द्रिय:
लता + इव - लतेव
राका + ईश: - राकेश:
शुभ + इच्छु: - शुभेच्छु:
गण + ईश: - गणेश:


अ/आ + उ/ऊ = ओ
पर + उपकार: - परोपकार:
हित + उपदेश: - हितोपदेश:
यज्ञ + उपवीतम् - यज्ञोपवीतम्
परीक्षा + उत्सव: - परीक्षोत्सव:
गङ्गा + उद्कम् - गङ्गोद्कम्
गगन + ऊर्ध्वम् - गगनोर्ध्वम् 
महा + ऊर्णम् - महोर्णम्
महा + उदय: - महोदय:
एक + ऊन: - एकोन:
विशाल + उरु: - विशालोरु:
महा + ऊर्जितम् - महोर्जितम्


अ/आ + ऋ = अर्
देव + ऋषि: - देवर्षि:
महा + ऋषि: - महर्षि:
सप्त + ऋषय: - सप्तर्षय,:
वसन्त + ऋतु: - वसन्तर्तु:
वर्षा + ऋतु: - वर्षर्तु:
महा + ऋद्धि: - महर्द्धि:
कृष्ण + ऋद्धि: - कृष्णर्द्धि:


अ/आ + ऌ = अल्
तव + ऌकार: - तवल्कार:
मम + ऌकार: - ममल्कार:
तव + ऌदन्त: - तवल्दन्त:
उप + ऌकारीयति - उपल्कारीयति

वृद्धि स्वर सन्धि (वृद्धिरेचि) = अ/आ के बाद यदि  ए/ऐ ओ/औ आए तो दोनो वर्णौं के स्थान पर वृद्धि-एकादेश ऐ औ  हो जाता है।
वृद्धिरादैच्  - ऐ  ‌ औ  (वृद्धि वर्ण)

अ/आ + ए/ऐ = ऐ
अ/आ + ओ/औ = औ
अभिप्राय -
अ + ए = ऐ       अ + ओ = औ
आ + ए = ऐ       आ + ओ = औ
अ + ऐ = ऐ       अ + औ = औ
आ + ऐ = ऐ       आ + औ = औ

उदाहरण
अ/आ + ए/ऐ = ऐ
कृष्ण + एकत्वम् - कृष्णैकत्वम्
देव + ऐश्वर्यम् -  देवैश्वर्यम्
जन + एकता - जनैकता
सपाद + एकवादनम् - सपादैकवादनम्
तथा + एव - तथैव
बाला + एषा - बालैषा
दीर्घ + ऐकार: - दीर्घैकार:

अ/आ + ओ/औ = औ
कृष्ण + औत्कण्ठ्यम् - कृषणौत्कण्ठ्यम्
बिम्ब + ओष्ठ - बिम्बौष्ठ
गङ्गा +ओघ: - गङ्गौघ:
महा + औषधि महौषधि 
मम + औदासीन्यम् - ममौदासीन्यम्

विशेष नियम -
अ + ऋ = आर्
प्र + ऋणम् - प्रार्णम्
कम्बल + ऋणम् - कम्बलाार्णम्
दश + ऋण: - दशार्ण:
वसन + ऋणम् - वसनार्णम्
वत्सतर + ऋणम् - वत्सतरार्णम्
ऋण + ऋणम् - ऋणार्णम्
प्र + ऋच्छति - प्रार्च्छतिॆ
सुख + ऋत: - सुखार्त:

गुण सन्धि का अपवाद -
प्रष्ठ + ऊह: - प्रष्ठौह
अक्ष + ऊहिनी - अक्षौहिणी
प्र + ऊढ: - प्रौढ:
प्र + ऊह: - प्रौह:
प्र + ऊढि: - प्रौढि:

पररूप सन्धि का अपवाद -
उप + एति - उपैति
अव + एति - अवैति
उप + एधते - उपैधते
प्र + एधते - प्रैधते
प्र + एष: - प्रैष:
प्र + एष्य: - प्रैष्य:

Saturday, May 9, 2020

सन्धि ~ सामान्य परिचय

सन्धि - सामान्य परिचय


      किन्हीं दो सार्थक शब्दों या पदों के दो वर्णों के परस्पर मेल से जो विकार उत्पन्न (परिवर्तन) होता है उसे सन्धि कहते हैं।
किन्ही दो सार्थक शब्दों के दो वर्णों से अभिप्राय
प्रथम शब्द या पद का अंतिम वर्ण  +  द्वितीय शब्द या पद का प्रथम वर्ण = सन्धि

वर्णों का यह परस्पर मेल छह प्रकार से होता है:-

  1. स्वर + स्वर
  2. स्वर + व्यंजन
  3. व्यंजन + स्वर
  4. व्यंजन + व्यंजन
  5. विसर्ग + स्वर
  6. विसर्ग + व्यंजन
शब्द और पद में अन्तर -
 
         हिन्दी भाषा की अगर हम बात करें तो शब्द और पद में कोई ज्यादा अंतर नहीं है। अंतर केवल इतना है कि कोई भी सार्थक शब्द जब किसी वाक्य में प्रयोग किया जाता है तो वह पद बन जाता है। जैसे - विद्यालय, बालक ये दोनो सार्थक शब्द है, परन्तु जब ये शब्द किसी वाक्य में प्रयोग किए जाने पर उस वाक्य के अर्थ को समझने मैं सहायता करते है जैसे बालक विद्यालय जाता है। यहां "बालक और विद्यालय" शब्द न होकर पद बन जाते हैं।
         संस्कृत भाषा की अगर हम बात करें तो संस्कृत में जब हम किसी शब्द या धातु के शब्दरूप या धातुरूप बनाते है तो तो वह शब्दरूप और धातुरूप ही पद कहे जाते हैं। जैसे राम शब्द के यदि हम राम: रामौ रामा: से लेकर हे राम! हे रामौ! हे रामा:! आदि शब्दरूप बनाते हैं इसी प्रकार पठ् धातु के यदि हम पठति पठत: पठन्ति से लेकर पठामि पठाव: पठाम: आदि धातुरूप बनाते हैं तो ये राम:, पठति आदि पद कहे जाते हैं।

       सन्धि को सीखने से पहले हमें शब्दों में से स्वर और व्यंजन को अलग अलग करना आना चाहिए। तो आइए हम सीखते हैं शब्दों या पदों में से स्वर और व्यंजन को अलग-अलग करना ।
उदाहरण -
राम - र् आ म् अ
राम: - र् आ म् अ:
माला - म् आ ल् आ
फल - फ् अ ल् अ
फलम् - फ् अ ल् अ म् 
पाठक - प् आ ठ् अ क् अ
गायिका - ग् आ य् ई क् आ
गुरु - ग् उ र् उ
वधू - व् अ ध् ऊ
नर्तकी - न् अ र् त् अ क् ई
ऋषि - ऋ ष् इ
कृति - क् ऋ त् इ
विज्ञान - व् इ ज् ञ् आ न अ
विद्यालय - व् इ द् य् आ ल् अ य् अ
प्रद्युम्न - प् र् अ द् य् उ म् न् अ
आकांक्षा - आ क् आं क् ष् आ
द्वंद्व - द् व् अं द्  व् अ
प्रसिद्धि -  प् र् अ स् इ द् ध् इ
क्रम - क् र् अ म् अ
कर्म - क् अ र् म् अ
शृङ्गार - श् ऋ ङ् ग् आ र् अ
महर्षि: - म् अ ह् अ र् ष् इ:
पतञ्जलि: - प् अ त् अ ञ् ज ल् इ:
चिह्नाङ्कन - च् इ ह् न् आ ङ् क् अ न् अ
ब्राह्मण: - ब् र् आ ह् म् अ ण् अ:
हृदय - ह् ऋ द् अ य् अ
ह्रास: - ह् र् आ स् अ:
एवं - ए व् अं
एवम् - ए व् अ म्
पितृ - प् इ त् ऋ


सन्धि के प्रकार
सन्धि तीन प्रकार की होती है :- 
  1. स्वर सन्धि
  2. व्यंजन संधि: सन्धि
  3. विसर्ग सन्धि
 
स्वर सन्धि -
       किन्हीं दो सार्थक शब्दों या पदों के दो स्वरों के परस्पर मेल से जो विकार उत्पन्न (परिवर्तन) होता है उसे स्वर सन्धि कहते हैं।
  • स्वर + स्वर = स्वर सन्धि
स्वर निम्न है :-
अ आ इ ई उ ऊ ऋ ऋ लृ ए ओ ऐ औ

सामान्यतः स्वर संधि के 5 भेद होते हैं 
  1. दीर्घ संधि
  2. गुण संधि
  3. वृद्धि संधि 
  4. यण् संधि
  5. अयादि संधि
परन्तु संस्कृत में स्वर सन्धि के 7 भेद हो जाते हैं :-
  1. पूर्वरूप संधि
  2. पररूप संधि

व्यंजन सन्धि -
       किन्हीं दो सार्थक शब्दों या पदों के एक स्वर व एक व्यंजन अथवा दो व्यंजनों के परस्पर मेल से जो विकार उत्पन्न (परिवर्तन) होता है उसे व्यंजन सन्धि कहते हैं।
  • स्वर + व्यंजन = व्यंजन सन्धि
  • व्यंजन + स्वर = व्यंजन सन्धि
  • व्यंजन + व्यंजन = व्यंजन सन्धि
स्वर निम्न है :-
अ आ इ ई उ ऊ ऋ ॠ लृ ए ओ ऐ औ
व्यंजन निम्न है :-
क ख ग घ ङ      च छ ज झ ञ
ट ठ ड ढ ण        त थ द ध न
प फ ब भ म
य व र ल            श ष स ह

व्यंजन संधि के भेद निम्न है :-

  1. घोष / जशत्व व्यंजन सन्धि 
  2. अघोष / चर्त्व व्यंजन सन्धि
  3. तालव्य / श्चुत्व व्यंजन सन्धि
  4. मूर्धन्य / ष्टुत्व व्यंजन सन्धि
  5. अनुनासिक व्यंजन सन्धि
  6. अनुस्वार व्यंजन सन्धि
  7. परसवर्ण व्यंजन सन्धि
  8. पूर्वसवर्ण व्यंजन सन्धि
  9. छत्व व्यंजन सन्धि

विसर्ग सन्धि -
       किन्हीं दो सार्थक शब्दों या पदों के विसर्ग व स्वर अथवा विसर्ग व व्यंजन के परस्पर मेल से जो विकार उत्पन्न (परिवर्तन) होता है उसे विसर्ग सन्धि कहते हैं।
  • विसर्ग + स्वर = विसर्ग सन्धि 
  • विसर्ग + व्यंजन = विसर्ग सन्धि
स्वर निम्न है :-
अ आ इ ई उ ऊ ऋ ॠ लृ ए ओ ऐ औ
व्यंजन निम्न है :-
क ख ग घ ङ      च छ ज झ ञ
ट ठ ड ढ ण        त थ द ध न
प फ ब भ म
य व र ल            श ष स ह
विसर्ग :- (:)

विसर्ग संधि के भेद निम्न है :-

  1. सत्व विसर्ग सन्धि
  2. रुत्व विसर्ग सन्धि
  3. उत्व विसर्ग सन्धि
  4. रेफ विसर्ग सन्धि
  5. विसर्ग लोप विसर्ग सन्धि
  6. रेफ लोप विसर्ग सन्धि

Tuesday, May 5, 2020

छन्द भाग ~ 1


छन्द (भाग  1)

वंशस्थ छन्द:

लक्षणम् - जतौ तु वंशस्थमुदीरितं जरौ ।।

प्रतिचरणे वर्णा: - 12 वर्णा:

गणानां क्रम: -  जगण (।ऽ।), तगण (ऽऽ।), जगण (।ऽ।), रगण (ऽ।ऽ)

उदाहरणम्

भवन्ति नम्रास्तरव: फलोद्गमै: ।
नवाम्बुभिर् दूरविलम्बिनो घना: ।
अनुद्धता: सत्पुरुषा: समृद्धिभिः ।
स्वभाव एवेष परोपकारिणाम् ।।

प्रथम पंक्ति में गणचिह्न देखें ~

भवन्ति नम्रास्तरव: फलोद्गमै:

 । ऽ  । ऽ ऽ   ।। ऽ   । ऽ । ऽ


वसन्ततिलका छन्द:

लक्षणम् - उक्ता वसन्ततिलका तभजा जगौ ग: ।।

प्रतिचरणे वर्णा: - 14 वर्णा:

गणानां क्रम: -  तगण (ऽऽ।), भगण (ऽ।।), जगण (।ऽ।), जगण (।ऽ।), 2 गुरु (ऽऽ)

उदाहरणम्

प्रारभ्यते न खलु विघ्नभयेन नीचै: ।
प्रारभ्यविघ्नविहता विरमन्ति मध्या: ।
विघ्नै: पुन: पुनरपि प्रतिहन्यमाना ।
प्रारब्धमुत्तमजना: न परित्यजन्ति ।।

प्रथम पंक्ति में गणचिह्न देखें ~

प्रारभ्यते न खलु विघ्नभयेन नीचै:

 ऽ ऽ । ऽ ।  ।  ।  ऽ  । ।ऽ ।  ऽ ऽ


इन्द्रवज्रा छन्द:

लक्षणम् - स्यादिन्द्रवज्रा यदि तौ जगौ ग:

प्रतिचरणे वर्णा: - 11 वर्णा:

गणानां क्रम: -  तगण (ऽऽ।), तगण (ऽऽ।), जगण (।ऽ।), 2 गुरु (ऽऽ)

उदाहरणम्

अर्थो हि कन्या परकीय एव ।
तामद्यसम्प्रेष्य   परिग्रहीतु: ।
जातो ममायं विशदः प्रकामं ।
प्रत्यर्पितन्यास इवान्तरात्मा ।।

प्रथम पंक्ति में गणचिह्न देखें ~

अर्थो हि कन्या परकीय एव

 ऽ ऽ  ।   ऽ  ऽ  ।। ऽ  । ऽऽ


उपेन्द्रवज्रा छन्द:

लक्षणम् - उपेन्द्रवज्रा जतजास्ततो गौ

प्रतिचरणे वर्णा: - 11 वर्णा:

गणानां क्रम: -  जगण (।ऽ।), तगण (ऽऽ।), जगण (।ऽ।), 2 गुरु (ऽऽ)

उदाहरणम्

त्वमेव माता च पिता त्वमेव ।
त्वमेव बन्धुश्च च सखा त्वमेव ।
त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव । 
त्वमेव सर्वं मम   देव देव: ।।

प्रथम पंक्ति में गणचिह्न देखें ~

त्वमेव माता च पिता त्वमेव

 । ऽ । ऽ  ऽ  ।  । ऽ    ।ऽ ऽ


उपजाति / जाति छन्द:

लक्षणम् - स्यादिन्द्रवज्रा यदि तौ जगौ ग: ।

             उपेन्द्रवज्रा   जतजास्ततो   गौ ।

             इत्थं किलान्यास्वपि मिश्रितासु ।

             वदन्ति   जातिष्विदमेव    नाम ।।

प्रतिचरणे वर्णा: - 11 वर्णा:

गणानां क्रम: -  इन्द्रवज्रा छन्द + उपेन्द्रवज्रा छन्द = उपजाति छन्द

उदाहरणम्

येषां न विद्या न तपो न दानं
ज्ञानं न शीलं न गुणो न धर्मः ।
ऐते मर्त्यलोके भुवि भारभूता: ।
मनुष्यरूपेण     मृगाश्चरन्ति ।।

प्रथम व चतुर्थ पंक्ति में गणचिह्न देखें ~

येषां न विद्या न तपो न दानं

ऽ ऽ  ।  ऽ  ऽ ।  । ऽ  ।  ऽ ऽ     (इन्द्रवज्रा)

मनुष्यरूपेण  मृगाश्चरन्ति

। ऽ  । ऽऽ ।   । ऽ  । ऽ ऽ        (उपेन्द्रवज्रा)


भुजङ्गप्रयातम् छन्द:

लक्षणम् - चतुर्भियकारैः भुजङ्गप्रयातम् ।।

प्रतिचरणे वर्णा: - 12 वर्णा:

गणानां क्रम: -  यगण (।ऽऽ), यगण (।ऽऽ), यगण (।ऽऽ), यगण (।ऽऽ)  अर्थात् 4 यगण

उदाहरणम्

महेशः सुरेशः परेशः परात्मा ।
दिनेशो निशेशो युगेशोऽसि देव ।
त्वमेवासि देवेश देवाधिदेव ।
प्रभो पाहि मां लोकनाथ: सदैव ।।

प्रथम पंक्ति में गणचिह्न देखें ~

महेशः सुरेशः परेशः परात्मा

। ऽ ऽ ।ऽ ऽ  ।ऽ ऽ  । ऽ ऽ