छन्द - सामान्य परिचय
पद्यरचना के लिए छन्दों का ज्ञान अत्यावश्यक है। छन्दो के ज्ञान से हम मंत्रों या श्लोको के गति-यति-लय के विषय में कौशल प्राप्त कर सकते हैं। छन्द वेदों के चरण कहे गए हैं। आइए छन्दों के विषय में जानकारी प्राप्त करते हैं -
अक्षर - जिसका उच्चारण हो सकता है वह अक्षर है। जैसे राम: । यहां रा और म: दो अक्षर है।
मात्रा - उच्चारण में लगने वाला आवश्यक समय ही मात्रा है। मात्राएं तीन प्रकार की होती है -
एकमात्र - ह्रस्व स्वर
द्विमात्र - दीर्घ स्वर
त्रिमात्र - प्लुत स्वर
यति - पद्यगायन में जहां एक चरण में अधिक अक्षर होते हैं वहां उनका एक साथ गायन सरल नही होता। अतः उन जगहों पर विराम आवश्यक है और निश्चित भी है। यही विराम यति कहलाता है।
लघुगुरुव्यवस्था - छन्दों का प्रयोग मूल्य तय है स्वयं पर आधारित है। अतः छन्दो की दृष्टि से वर्ण दो प्रकार के है:-
- लघुवर्ण - सामान्यत: ह्रस्व स्वर लघु होते है। इनके लिए चिह्न "।" निर्धारित है। लघुवर्ण 5 है - अ,इ,उ,ऋ,ऌ।
- गुरुवर्ण - सामान्यत: दीर्घ स्वर गुरु होते है। इनके लिए चिह्न "ऽ" निर्धारित है। गुरुवर्ण 8 है - आ,ई,ऊ,ऋ,ए,ऐ,ओ,औ।
लघुगुरुव्यवस्था में कुछ विशेष नियम है-
- अनुस्वारयुक्त वर्ण गुरु होता है।
- विसर्गयुक्त वर्ण गुरु होता है।
- संयुक्ताक्षर से पूर्व वर्ण गुरु होता है।
- चरण का अंतिम वर्ण यदि लघु है तो उसे आवश्यकतानुसार गुरुवर्ण स्वीकार कर सकते हैं।
चरण - सामान्यत: श्लोकों में चार पंक्तियां होती हैं। ये पंक्तियां ही छन्द की भाषा में चरण कहे गए हैं। चरण के लिए पाद शब्द का भी प्रयोग किया जाता हैं। मात्र गायत्री छन्द ही एक ऐसा छन्द है जिसमें तीन चरण होते हैं।
गणव्यवस्था - वर्णों की गणना की दृष्टि से गणव्यवस्था होती है। तीन वर्णों के समूह से गण बनता है। गणों की संख्या 8 है।
गणसूत्र - यमाताराजभानसलगा
- यगण - ।ऽऽ (य मा ता)
- मगण - ऽऽऽ (मा ता रा)
- तगण - ऽऽ। (ता रा ज)
- रगण - ऽ।ऽ (रा ज भा)
- जगण - ।ऽ। (ज भा न)
- भगण - ऽ।। (भा न स)
- नगण - ।।। (न स ल)
- सगण - ।।ऽ (स ल गा)
छन्द-भेद - सामान्यत: छन्दों के दो भेद हैं:- 1. वैदिक छन्द, 2. लौकिक छन्द। लौकिक छन्द के भी दो भेद हैं :- 1. मात्रिक छन्द, 2. वर्णिक छन्द।
मात्रिकछन्द - जहाँ मात्राओं की गणना के आधार पर छन्द होता है, वहाँ मात्रिकछन्द होता है। यहां पर भी गण होते हैं किन्तु वे 5 मात्रिक गण होते हैं, जैसे - आर्या छन्द।
वर्णिकछन्द - यहाँ वर्णों की गणना के आधार पर छन्द होते हैं, जैसे - इन्द्रवज्रा छन्द, मालिनी छन्द, शिखरिणी छन्द, वसन्ततिलका छन्द आदि।
लघुगुरुव्यवस्था को समझने हेतु कुछ उदाहरण
राम (रा म) - ऽ।
सीता (सी ता) - ऽऽ
रितिका (रि ति का) - ।।ऽ
मधु (म धु) - ।।
वधू (व धू) - ।ऽ
सतपाल (स त पा ल) - ।।ऽ।
ऋषि (ऋ षि) - ।।
कृति (कृ ति) - ।।
वैदेही (वै दे ही) - ऽऽऽ
अनुस्वारयुक्त वर्ण - गुरु
कंठ (कं ठ) - ऽ।
अंजलि (अं ज लि) - ऽ।।
पंकज (पं क ज) - ऽ।।
एवं (ए वं) - ऽऽ
फलं (फ लं) - ।ऽ
विसर्गयुक्त वर्ण - गुरु
रमेश: (र मे श:) - ।ऽऽ
माला: (मा ला:) - ऽऽ
सिंहः (सिं हः) - ऽऽ
आसंद: (आ सं द:) - ऽऽऽ
चटका: (च ट का:) - ।।ऽ
संयुक्ताक्षर से पूर्व वर्ण - गुरु
इन्द्र: (इन्द् रः) - ऽऽ
सक्षम: (सक् ष म:) - ऽ।ऽ
विद्यार्थी (विद् यार् थी) - ऽऽऽ
प्रत्युत्पन्नमति: (प्रत् युत् पन् न म ति:) - ऽऽऽ।।ऽ
अन्योन्याश्रित (अन् योन् याश् रि त) - ऽऽऽ।।
हृदयम् (हृ द यम्) - ।।ऽ
प्रतिद्वंद्वी (प्र तिद् वंद् वी) - ।ऽऽऽ
उत्तरोत्तर - (उत् त रोत् त र) - ऽ।ऽ।।
ह्रास (ह्रा स) - ऽ।
युक्त: (युक् त:) - ऽऽ
मुमुक्षु (मु मुक् षु) - ।ऽ।
क्षत्रिय (क्षत् रि य) - ऽ।।
विज्ञानम् (विज् ञा नम्) - ऽऽऽ
संख्या (संख् या) - ऽऽ
क्रम: (क्र म:) - ।ऽ
कर्म (कर् म) - ऽ।
शृङ्गार: (शृङ् गा र:) - ऽऽ।
महर्षि: (म हर् षि:) - ।ऽऽ
प्रसिद्धि (प्र सिद् धि) - ।ऽ।
पतञ्जलिः (प तञ् ज लिः) - ।ऽ।ऽ
चिह्नाङ्कन (चिह् नाङ् क न) - ऽऽ।।
ब्राह्मण: (ब्राह् म ण:) - ऽ।ऽ