अव्ययपदनि
संस्कृत भाषा में शब्द दो प्रकार के होते हैं।
१. विकारी और २. अविकारी।
1 विकारी शब्द - वे शब्द जिनका तीनो लिंगो, तीनों वचनों तथा सभी विभक्तियों में रूप परिवर्तित हो जाता है अभी विकारी शब्द कहलाते हैं। यथा - राम (राम: रामेण रामेभ्य:), नगर (नगरम् नगरे नगराणि), तट (तट: तटी तटम्) आदि।
2 अविकारी शब्द - जो शब्द तीनों लिंगो तीनों वचनों तथा सभी विभक्तियों में एक समान (एक-जैसे) रहते है। हमें कोई रूप परिवर्तन नहीं होता वे अविकारी शब्द कहलाते हैं जिन्हें अव्यय भी कहा जाता है। यथा - उच्चै: शनै: अत्र तत्र यदा कदा अपि आदि।
सदृशं त्रिषु लिङ्गेषु,सर्वासु च विभक्तिषु ।
वचनेषु च सर्वेषु यन्न व्ययेति तदव्ययम् ।।
अव्यय दो प्रकार के होते हैं :-
1 रूढ़ / अव्युत्पन्न - जो न किसी शब्द के योग से निर्मित होते हैं और न ही किसी धातु के योग से इनकी उत्पत्ति होती है। जैसे - च, अपि, वा, विना, पृथक्
2 यौगिक / व्युत्पन्न - जिनका निर्माण किसी धातु अथवा शब्द के योग से होता है। ये दो प्रकार के होते है:-
A कृदन्त अव्यय - पठित्वा पठितुम्
B तद्धितान्त अव्यय - सर्वदा चतुर्धा। तद्धित अव्ययों के भी भेद है:-
a विभक्ति बोधक - कुत: ग्रामत: कुत्र अत्र
b काल बोधक - यदा कदा सर्वदा
c प्रकार बोधक - यथा तथा कथम् इत्थम्
d विविधता बोधक - अनेकश: पंचकृत्व
पाठ्यक्रम में निर्धारित अव्ययपदानि
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