Friday, April 2, 2021

समास ~ सामान्य परिचय एवं अव्ययीभाव समास

 

समास

समास इत्युक्ते संक्षिप्तीकरणम्। समसनं‌ समास:। अनेकपदानाम् एकपदीभवनं समास:। अर्थात् अनेक (दो या दो से अधिक) पद मिलकर जब एक पद हो जाते हैं तो अनेक पदो के एकपद होने की प्रक्रिया को समास कहा जाता है। इस प्रक्रिया के अंतर्गत दोनों पदों के मध्य आने वाली विभक्तियों अथवा कारक चिह्नों का लोप होकर एक नया पद बन जाता है। संस्कृत में विभक्ति कार्य होने पर वह पद बनता है। 

    समास को सीखने से पहले समास से जुड़ी शब्दावली के विषय में जान लेते है

1    समस्तपद - समास विधि से बने पद 

2    पूर्वपद - समस्त पद का पहला पद

3    उत्तरपद - समस्त पद का दूसरा पद

4     समास विग्रह - समस्त पद का विस्तृत रूप


उदाहरण 1 - सीतापति:

सीतापति: = समस्त पद (समास विधि से बना पद)

सीता = पूर्वपद (समस्त पद का पहला पद)

पति: = उत्तरपद (समस्त पद का दूसरा पद)

सीताया: पति: = समास विग्रह (समस्त पद का विस्तृत रूप)

उदाहरण 2 - राजकुमार

राजकुमार = समस्त पद (समास विधि से बना पद)

राज = पूर्वपद (समस्त पद का पहला पद)

कुमार = उत्तरपद (समस्त पद का दूसरा पद)

राजा का कुमार = समास विग्रह (समस्त पद का विस्तृत रूप)


समास के भेद 

समास के मुख्य रूप से चार भेद होते हैं। पद के अर्थ (पदार्थ) की प्रधानता के आधार पर ही समास के ये भेद होते हैं। प्रायेण पूर्वपदार्थप्रधानः अव्ययीभावः भवति ।

प्रायेण उत्तरपदार्थप्रधानः तत्पुरुषः भवति । तत्पुरुषस्य भेदः कर्मधारयः भवति । कर्मधारयस्य भेदः द्विगुः भवति । 

प्रायेण अन्यपदार्थप्रधानः बहुव्रीहिः भवति।

प्रायेण उभयपदार्थप्रधानः द्वन्द्धः भवति। 

इस प्रकार समास के सामान्यत: छ: भेद होते हैं:-

1    अव्ययीभाव समास

2    तत्पुरुष समास ~ कर्मधारय समास ~ द्विगु समास

3    द्वन्द्व समास

4    बहुव्रीहि समास

विशेष - यहाँ तत्पुरुष का भेद कर्मधारय तथा कर्मधारय का भेद द्विगु है।

परन्तु संस्कृत में समास के पाँच भेद हो जाते हैं। स च विशेषसंज्ञाविनिर्मुक्तः केवलसमासः

5    केवल समास



1     अव्ययीभाव समास (अव्ययंविभक्ति-समीप-समृद्धि-व्यृद्धि-अर्थाऽभावाऽत्ययासंप्रति-शब्दप्रादुर्भाव-पश्चाद्-यथाऽऽनुपूर्व्य-यौगपद्य-सादृश्य-सम्पत्ति-साकल्याऽन्त-वचनेषु)

       जिसमें  प्राय: पूर्वपद के अर्थ की प्रधानता होती है वह अव्ययीभाव समास कहलाता है। (1) विभक्ति (2) समीप (3) समृद्धि (4) व्यृद्धि - समृद्धि का नाश (5) अभाव (6) नष्ट होना (7) अनुचित (8) शब्द की अभिव्यक्ति (9) पश्चात् (10) यथा (11) क्रमश: (12) एक साथ होना (13) समानता (14) संपत्ति (15) सम्पूर्णता (16) अन्त। इन अर्थों में वर्तमान अव्यय का सुबन्त के साथ जब नित्य समास होता है, तब यह अव्ययीभाव समास होता है। अर्थात्

(क)   जो शब्द समास होने से पूर्व तो अव्यय न हो किन्तु समास होने पर "अव्यय" हो जाये, वही अव्ययीभाव समास है।

(ख)   इस समास का प्रथम शब्द अव्यय तथा द्वितीय शब्द संज्ञा शब्द होता है। 

(ग)    अव्यय शब्दार्थ की अर्थात् पूर्व पद की प्रधानता होती है। 

(घ)    समास के दोनों पद मिलकर अव्यय होते हैं। 

(ङ)    अव्ययीभाव समास नपुंसकलिङ्ग के एकवचन में होता है।


उदाहरण :-

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