Wednesday, April 14, 2021

कारक ~ सामान्य परिचय एवं कर्ता कारक


 कारक


            क्रियाजनकत्वं कारकत्वम् । क्रियान्वयित्वं कारकत्वम् । अर्थात् जो क्रिया का जनक होता है या जो क्रिया को क्रियान्वित करता है अथवा जिसका क्रिया से सीधा या परस्पर सम्बन्ध‌ होता है, वह कारक कहलाता है। कारक के क्रिया से सीधे या परस्पर सम्बन्ध‌ को एक उदाहरण से जाना व समझा जा सकता है। 

हे मनुष्या:! यज्ञदत्तस्य पुत्र: देवदत्त: स्वहस्तेन कोषात् निर्धनाय ग्रामे धनं ददाति।

आइये क्रिया से प्रश्नोत्तर के माध्यम से जानते हैं कि क्रिया का कारकों के साथ सीधा सम्बन्ध किस प्रकार से है?

         उक्त उदाहरण में ददाति क्रिया का देवदत्त: स्वहस्तेन कोषात् निर्धनाय‌ ग्रामे धनम् आदि पदों से सीधा या परस्पर प्रत्यक्ष सम्बन्ध है। अत: ये सभी कारक कहे जाते है। हे मनुष्या: और यज्ञदत्तस्य का सम्बन्ध क्रिया से नही है अत: ये दोनो पद कारक नही है। यहाँ सम्बन्ध कारक तो नही है परन्तु उसमें षष्ठी विभक्ति होती है और सम्बोधन में प्रथमा विभक्ति होती है।

कारको के भेद :-

संस्कृत में कारकों की संख्या छह  मानी गई है। यथा 

कर्ता कर्म च करणं च सम्प्रदानं तथैव च। 

अपादानाधिकरणमित्याहुः कारकाणि षट् ।।

1  कर्ता         2  कर्म         3  करण

4  सम्प्रदान    5  अपादान    6  अधिकरण


संस्कृत में शब्दरूपों में सात विभक्तियों होती हैं और ये सात विभक्तियाँ ही कारक के रूप में जानी जाती हैं।


प्रथमा विभक्ति (कर्ता कारक)

1    स्वतंत्र: कर्ता ~ क्रिया को करने में जो स्वतंत्र हो वह कर्ता कहलाता है। यथा मोहन: पठति। यहाँ पठन क्रिया को करने के लिए स्वतंत्र है अतः मोहन: कर्ता है।

कर्ता की स्थिति के अनुसार वाक्य / वाच्य तीन प्रकार के होते हैं।

कर्तृवाच्य - मोहन: पुस्तकं‌ पठति।

कर्मवाच्य - मोहनेन पुस्तकं पठ्यते।

भाववाच्य - मोहनेन हस्यते।


2    प्रातिपदिकार्थलिङ्गपरिमाणवचनमात्रे प्रथमा ~ प्रातिपदिकार्थ मात्र में, लिंग मात्र की अधिकता में, परिमाण मात्र की अधिकता में, वचन मात्र की अधिकता में, प्रथमा विमक्ति होती है।

उदाहरण

प्रातिपदिकार्थमात्रे 

A अलिंग - उच्चै: नीचै: शनै: अभित: अत्र तदा

B  नियतलिंग - कृष्ण: श्री ज्ञानम्

लिंगमात्राधिक्ये

C .अनियतलिंग - तट: तटी तटम्

परिमाणमात्राधिक्ये - द्रोणो व्रीहि:

वचनमात्राधिक्ये - एक: द्वौ बहव:


3    सम्बोधने च ~ सम्बोधन में भी प्रथमा विभक्ति होती है।

उदाहरण

हे राम! अत्र आगच्छ।

हे सीते! पुस्तकं ददातु।

Tuesday, April 13, 2021

अव्ययपदानि


 अव्ययपदनि


संस्कृत भाषा में शब्द दो प्रकार के होते हैं।

१. विकारी और २. अविकारी। 

1     विकारी शब्द - वे शब्द जिनका तीनो लिंगो, तीनों वचनों तथा सभी विभक्तियों में रूप परिवर्तित हो जाता है अभी विकारी शब्द कहलाते हैं। यथा - राम (राम: रामेण रामेभ्य:), नगर (नगरम् नगरे नगराणि), तट (तट: तटी तटम्) आदि।

2     अविकारी शब्द -  जो शब्द तीनों लिंगो तीनों वचनों तथा सभी विभक्तियों में एक समान (एक-जैसे) रहते है। हमें कोई रूप परिवर्तन नहीं होता वे अविकारी शब्द कहलाते हैं जिन्हें अव्यय भी कहा जाता है। यथा - उच्चै: शनै: अत्र तत्र यदा कदा अपि आदि।

सदृशं त्रिषु लिङ्गेषु,सर्वासु च विभक्तिषु । 

वचनेषु च सर्वेषु यन्न व्ययेति तदव्ययम् ।।


अव्यय दो प्रकार के होते हैं :-

1     रूढ़ / अव्युत्पन्न - जो न किसी शब्द के योग से निर्मित होते हैं और न ही किसी धातु के योग से इनकी उत्पत्ति होती है। जैसे - च, अपि, वा, विना, पृथक्

2     यौगिक / व्युत्पन्न - जिनका निर्माण किसी धातु अथवा शब्द के योग से होता है। ये दो प्रकार के होते है:-

  A     कृदन्त अव्यय - पठित्वा पठितुम्

  B     तद्धितान्त अव्यय - सर्वदा चतुर्धा। तद्धित अव्ययों के भी भेद है:-

     a     विभक्ति बोधक - कुत: ग्रामत: कुत्र अत्र

     b     काल बोधक - यदा कदा सर्वदा

     c     प्रकार बोधक - यथा तथा कथम् इत्थम्

     d     विविधता बोधक - अनेकश: पंचकृत्व


पाठ्यक्रम में निर्धारित अव्ययपदानि


Friday, April 2, 2021

समास ~ सामान्य परिचय एवं अव्ययीभाव समास

 

समास

समास इत्युक्ते संक्षिप्तीकरणम्। समसनं‌ समास:। अनेकपदानाम् एकपदीभवनं समास:। अर्थात् अनेक (दो या दो से अधिक) पद मिलकर जब एक पद हो जाते हैं तो अनेक पदो के एकपद होने की प्रक्रिया को समास कहा जाता है। इस प्रक्रिया के अंतर्गत दोनों पदों के मध्य आने वाली विभक्तियों अथवा कारक चिह्नों का लोप होकर एक नया पद बन जाता है। संस्कृत में विभक्ति कार्य होने पर वह पद बनता है। 

    समास को सीखने से पहले समास से जुड़ी शब्दावली के विषय में जान लेते है

1    समस्तपद - समास विधि से बने पद 

2    पूर्वपद - समस्त पद का पहला पद

3    उत्तरपद - समस्त पद का दूसरा पद

4     समास विग्रह - समस्त पद का विस्तृत रूप


उदाहरण 1 - सीतापति:

सीतापति: = समस्त पद (समास विधि से बना पद)

सीता = पूर्वपद (समस्त पद का पहला पद)

पति: = उत्तरपद (समस्त पद का दूसरा पद)

सीताया: पति: = समास विग्रह (समस्त पद का विस्तृत रूप)

उदाहरण 2 - राजकुमार

राजकुमार = समस्त पद (समास विधि से बना पद)

राज = पूर्वपद (समस्त पद का पहला पद)

कुमार = उत्तरपद (समस्त पद का दूसरा पद)

राजा का कुमार = समास विग्रह (समस्त पद का विस्तृत रूप)


समास के भेद 

समास के मुख्य रूप से चार भेद होते हैं। पद के अर्थ (पदार्थ) की प्रधानता के आधार पर ही समास के ये भेद होते हैं। प्रायेण पूर्वपदार्थप्रधानः अव्ययीभावः भवति ।

प्रायेण उत्तरपदार्थप्रधानः तत्पुरुषः भवति । तत्पुरुषस्य भेदः कर्मधारयः भवति । कर्मधारयस्य भेदः द्विगुः भवति । 

प्रायेण अन्यपदार्थप्रधानः बहुव्रीहिः भवति।

प्रायेण उभयपदार्थप्रधानः द्वन्द्धः भवति। 

इस प्रकार समास के सामान्यत: छ: भेद होते हैं:-

1    अव्ययीभाव समास

2    तत्पुरुष समास ~ कर्मधारय समास ~ द्विगु समास

3    द्वन्द्व समास

4    बहुव्रीहि समास

विशेष - यहाँ तत्पुरुष का भेद कर्मधारय तथा कर्मधारय का भेद द्विगु है।

परन्तु संस्कृत में समास के पाँच भेद हो जाते हैं। स च विशेषसंज्ञाविनिर्मुक्तः केवलसमासः

5    केवल समास



1     अव्ययीभाव समास (अव्ययंविभक्ति-समीप-समृद्धि-व्यृद्धि-अर्थाऽभावाऽत्ययासंप्रति-शब्दप्रादुर्भाव-पश्चाद्-यथाऽऽनुपूर्व्य-यौगपद्य-सादृश्य-सम्पत्ति-साकल्याऽन्त-वचनेषु)

       जिसमें  प्राय: पूर्वपद के अर्थ की प्रधानता होती है वह अव्ययीभाव समास कहलाता है। (1) विभक्ति (2) समीप (3) समृद्धि (4) व्यृद्धि - समृद्धि का नाश (5) अभाव (6) नष्ट होना (7) अनुचित (8) शब्द की अभिव्यक्ति (9) पश्चात् (10) यथा (11) क्रमश: (12) एक साथ होना (13) समानता (14) संपत्ति (15) सम्पूर्णता (16) अन्त। इन अर्थों में वर्तमान अव्यय का सुबन्त के साथ जब नित्य समास होता है, तब यह अव्ययीभाव समास होता है। अर्थात्

(क)   जो शब्द समास होने से पूर्व तो अव्यय न हो किन्तु समास होने पर "अव्यय" हो जाये, वही अव्ययीभाव समास है।

(ख)   इस समास का प्रथम शब्द अव्यय तथा द्वितीय शब्द संज्ञा शब्द होता है। 

(ग)    अव्यय शब्दार्थ की अर्थात् पूर्व पद की प्रधानता होती है। 

(घ)    समास के दोनों पद मिलकर अव्यय होते हैं। 

(ङ)    अव्ययीभाव समास नपुंसकलिङ्ग के एकवचन में होता है।


उदाहरण :-